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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६१-७५ शिवसहाय चतुर्वेदी ( १६७२ ) और नरोत्तमदास (१६७५ ) का । निबंधकारों में चंद्रमौलि शुक्ल (१९६४), रामचंद्र शुक्ल (१९६५) तथा गुलाबराय ( १९७१) इस काल में आते हैं। रामचंद्र शुक्ल का हिंदी-भापा का इतिहास अच्छा है। आपसे हमारे अालोचना-विभाग को दीप्ति मिली है। गुलाबरायजी के दर्शनशास्त्र- संबंधी निबंध स्तुत्य हैं । समालोचनाकार इस में काल रामचंद्र शुक्ल (१९६५), रामनरेश त्रिपाठी ( १६७१) और रामकुमार वर्मा (१६७४ ) हैं । शुक्लजी ने जायसी पर अच्छा श्रम किया है। इतिहासकारों में इस काल शिवनाथसिंह सेंगर (१९६१), चंद्र- मनोहर सित्र ( १९६३), प्रतिपालसिंह (१९६३), रामदेवजी प्रोफेसर कॉगड़ी (१९६४), लक्ष्मीनारायणसिंह (१६६७), जनार्दन भट्ट (१९७१) तथा लौटूसिंह ( १९७३ ) मुख्य हैं । इनमें रामदेवजी सर्वश्रेष्ठ हैं । इनका भारतवर्षीय प्राचीन इतिहास सुपाच्य तथा शिक्षाप्रद है। लौटूसिंहजो पुराताव पर श्रम करके भारत का अच्छा इतिहास लिख रहे हैं । जनादन भट्ट ने देश-भक्ति को लिए हुए इतिहास लिखा है । इतर महाशयों के भी परिश्रम स्तुत्य हैं। पुरातन में काशीप्रसाद जायसवाल (१९६३), विश्वेश्वरनाथ रेउ (१९६७), लोचनप्रसाद पांडेय ( १६७२) तथा उपर्युक्त लौटूसिंह वर्णनीय हैं । इन सभी ने इस विषय पर मान्य श्रम किया है, विशेषतचा जायसवाल तथा रेड महाशयों ने । जीवन- चरित्रकार इंद्रजी ( १६७०) तथा रामचंद्र टंटन (१६७० ) हैं । ये दोनो सुलेखक हैं । बनारसीदालजी चौबे ने चरित्र चिन्नण अच्छे किए हैं। खड़ी बोली में इस काल मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानंदन पंत, रामनरेश त्रिपाठी, लोचनप्रसाद पांडेय, जयशंकर प्रसाद, गोविंद- वल्लभ पंत, चतुरसेन शास्त्री, वियोगी हरि श्रादि उस्कृष्ट लेखक हैं ।