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मिश्रबंधु

सं० १९६१ उत्तर नूतन विवरण-श्राप पं० वचनि श्राचारीजी के पुन्न हैं । ऊपर दिए हुए मंथों के अतिरिक्त इन्होंने 'स्टेशन-मास्टर्स गाइड' 'शार्टेस्ट रूट' और 'ट्राफ़िक एकाउंट्स' आदि कई अँगरेजी की सी पुस्तक लिखी हैं। इस समय यह श्रीतुलसीदासजीकृत रामायण का भाप्य कर रहे हैं। पहले श्राप खड़ी बोली में कविता करते थे, किंतु अव ब्रजभाषा में करने लगे हैं । इधर कुछ समय से बैसवारी भाषा में भी कविता करना प्रारंभ कर दिया है। थोड़े दिन हुए, श्राप रेल की सेवा से रिटायर वृद्धावस्था मना रहे हैं। उदाहरण- लागि गै गुलाब लूक पात्र सव फोकी भई , मेवन मौन कीन्ह कोकिला बनाय कै; चोंकि-चौकि चातक चित कै चहुँ ओर हेरि , शरद है साह कीन्ह खंजन बुलाय शिशिर, हेमंत हू तुपार बार कीन्ह बहु , दलि डारयो कंज-दल भौरन भजाय के; साव सुदि पंचमी शिविर शीत बाह करि , गाइयो है पसंत ढाह ढोलहू बजाय के। भायो ना निदाघ अरु पावस शरद सखि , शिशिर हेमंत हू विधान घोर छायो है लायो ऋतुराज सब सुख के समाज अाज, मधुप-निकर पिक चातक सुहायो है। मल्लिका गुलाव कंज संजु बन फूलि रहे , मलय महक मनसिज हू जगायो है कवलौं वियोग पीर अबलौं सहन करे , अबलौं न पायो कहाँ अब लौ लगायो है। । . .