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मिश्रबंधु

३४६ मिश्रवधु-विनोद सं० १९६२ दशरथ के प्रति, (१८) उच्छ्वास, (१६) चकोर की वेदना और वर्षा । आप तहसीलदारी के काम से छुट्टी न रहने पर भी कुछ न कुछ लिखा ही करते थे। आपने निम्न लिखित और पुस्तकें लिखीं- (१) बंधु-विनय (पद्य), (२) धनुप-भंग (पद्य), (३) रणजीत- सिंह, (४) आर्य-ललाना, (१) गोरखपुर-विभाग के कवि, (६) भारतवर्ष के प्रसिद्ध पुरुष, (७) मुसलमानी काल का भारत । शोक का विषय है, आपका देहांत बहुत थोड़ी अवस्था में हो गया । श्राप उच्च श्रेणी के लेखक और सज्जन देश-प्रेमी थे। आपकी अमर रचनाओं में बहुत ही श्लाघ्य अनूठापन रहता था। यदि आप दीर्घ- जीवी होते; तो वर्तमान लेखकों में बहुत ऊँचे स्थान के अधिकारी बनते । अब भी आपकी रचनाएँ बहुत ही श्रेष्ठ हैं। उदाहरण- जन्म दिया माता-सा जिसने किया सदा लालन-पालन जिसके मिट्टी-जल से ही है रचा गया हम सबका तन । गिरिवरगण रक्षा करते हैं उच्च उठा के शृंग महान जिसके लता द्रुमादिक करते हमको अपनी छाया दान । माता केवल बाल-काल में निज अंकम में धरती है , हम अशक्ल जब तलक तभी तक पालन-पोपन करती है। मातृभूमि करती है मेरा लालन सदा मृत्यु पर्यंत जिसके दया-प्रवाहों का नहिं होता सपने में भी अंत । मर जाने पर कण देहों के इसमें ही मिल जाते हैं , हिंदू जलते, यवन-इसाई दफ़न इसी में पाते हैं। ऐसी मातृभूमि मेरी है स्वर्ग-लोक से भी प्यारी, जिसके पद-कमलों पर मेरा तन-मन-धन सब बलिहारी। श्राप बड़े ही देश-भक्त तथा सज्जन थे। आपकी अकाल मृत्यु से हिंदी की भारी हानि हुई है। , , 9 .