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मिश्रबंधु

सं० १९६२ उत्तर नूतन । नाम-(३८६२) रामप्रियाजी। श्रीमती रानी रखुराजवरि उपनाम रामाविया अवधप्रदेशांतर्गत जिला प्रतापगढ़ के प्रानरेबुल राजा प्रतापबहादुरसिंह के० सी० आई० ई० की रानी थीं। इन्होंने सहाराज एडवर्ड सप्तम के तिलकोत्सव में इंगलैंड जाकर महारानी से मुलाकात की थी। यह बड़ी विदुषी थीं। इन्होंने भक्ति-पक्ष के अनेक रागों में रामप्रिया-विलास-नामक ग्रंथ रचा, जिससे इनकी विद्या का परिचय मिलता है। इसी ग्रंथ से एक छंद नीचे लिखते हैं- कहि रामप्रिया गुन गावै, जो राम के, छंद रच जो हुलासन सों; सु अलकृत छंद विचारयो करें नित बैठे रहैं दृढ़ श्रासन सों। फल चारिहु पावै बिना श्रम के भय ताहि कहाँ जम-पासन सौं; . फिरि अंतहु स्वर्ग पयान करै कबि बैठे बिमान हुलासन सों। इन्होंने उपयुक्त अंथ के अतिरिक्त स्फुट रचना भी की है इनकी भापा प्रांजल और भाव सरल है। इनका स्वर्गवास वैशाख सं० १९७१ में हो गया। इनकी कविता श्रेष्ठ थी। नाम-(३.६३ ) सत्यदेव । जन्म-काल- लगभग सं० १६३६ । यह महाशय अमेरिका से विद्या प्राप्त करके लौट आए हैं । आपका हिंदी-प्रेम बड़ा सराहनीय है । अमेरिका से भी अच्छे-अच्छे गद्य- लेख प्रसिद्ध-प्रसिद्ध पत्रों में सदा छपवाते रहे, और स्वदेशानुराग-पूर्ण लेखों में अनेकानेक बातों का वर्णन करते रहे। आपके यहाँ आ जाने से हिंदी-उन्नति की विशेष प्राशा है । जाति के खत्री हैं। आपने जातीयशिक्षा, मनुष्य के अधिकार प्रादि कई उत्कृष्ट गद्य-ग्रंथ रचे हैं। बहुतदिनों से श्राप देश-भक्त संन्यासी हैं, परंतु हिंदी का काम भब भी बड़े उत्साह से करते हैं। आपने अमेरिका, जर्मनी, कैलाश