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मिश्रबंधु

सं० १९६३ उत्तर नूतन रचना-काल-स. १९६३ । ग्रंथ-(१) सावित्री, (२) सुकन्या, (३) ऋतु-विनोद, (४) कठिनाई में विद्याभ्यास, (५) अर्थशास्त्र, (६) सुधूपा, (७) श्रारोग्य-दिग्दर्शन, (%) जयाजयंत, (6) भीम-प्रतिज्ञा (१०) शुद्धाहत-सिद्धांत, (११) गीतांजलि, ( १२ ) चित्रांगदा, (१३) वागशन, (१४) राई का पर्वत, (१५) पद्य-रत्न-प्रभा, (१६) उषा, (१७) सच्चे सुख की कुंजियाँ, (१८) संसार में सुख कहाँ है, (१६) बारह भावना, (२०) रत्नकरंड श्रावका- चार, (२१) भक्तामर कल्याण मंदिर, ( २२ ) पंचस्तोत्र । विवरण- [---आप प्रश्रोरा नागर ब्राह्मण बजेश्वर भट्ट के पुत्र संस्कृत के विद्वान, अच्छे कवि तथा हिंदी को सुयोग्य लेखक एवं कविता-प्रेमी हैं। उदाहरण- तिय-मुख रहे निहार करे विचार न काम का करनी के निरधार वह मनुष्य किस काम का। गिरिधर तत्र विचार दोनो की इक जाति है पर जग के व्यवहार यह हीरा वह कोयला । जड़ से उखाड़ डारो डारो है सुखाय मेरे प्राण घोटि डारे धर धुवाँ के मकान में मोरी गाँठ काटें, मोहि चाकू से तरास डारें, अंत चीर डारें धर नाहि व्यथा ध्यान में । स्याही माँहि बोरि-बोरि करें मुख कारो मेरो, फर मैं उजारो तोहू ज्ञान के जहान में परेहू एराए हाय ! तजों न परोपकार, चाहे घिस जाऊँ यों कलम कहे कान में । नाम-(३८६७) चंद्रमनोहर मिश्र वी० ए०, एल-एल० बी। . . 1