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मिश्रबंधु

मिनबंधु-विनोद सं०११६३ निश्चर अनार्य तिव्वति असूर , वीय कोल सुर नाग सूर । दिति-दनुज, गरुड़ द्राविड़ सु गौंड , सुत सरल प्रारजन दिय बौढ । कुल सूर - चंद्र - संता महान , किय सभ्य प्रतिष्ठित संसथान। नाम-(३६०० ) रामचंद्र द्विवेदी (श्रीपति), ग्राम अग्रौली, जिला बलिया। जन्म-काल-सं० ११३८ । ग्रंथ (मुद्रित)- (३) उपदेश-कुलुमाकर, (२) धर्म, (३) ईश्वरास्तित्व, (४) गांधी-गुण-दर्पण, (१) करुण-क्रंदन, (६) भारत-विलाप-बत्तीसी, (७) हिंदू जाति का संगठन और सुधार, (८) हिंदुनो सावधान, (६) शिक्षा, (१०) प्राचीन और अर्वाचीन भारत । ( अमुद्रित) (१) भारत-सुधार, (२) कवि-सम्राट् तुलसीदास, (३) वैदिक सतसई, (४) लीलावती-लता ( भास्कराचार्य-कृत लीलावती- नामक गणित ग्रंथ का पद्यानुवाद ), (१ ) सुख-शांति-सरोवर, (६) तुलसी-सतसई की टीका, (७) हिंदू-आर्य-मीमांसा, (८) श्रीपति-शतक (१०० भिन्न विषयों पर कविताएँ )। विवरण-द्विवेदीजी हिंदी भाषा के अच्छे मर्मज्ञ हैं। श्राप हिंदी साहित्य के लेखक तथा कवि होने के अतिरिक्त अच्छे व्याख्याता भी हैं । वैद्यनाथ धाम के गुरुकुल-स्थापना का मुख्य श्रेय श्राप ही को है। [पं० गंगाशरणसिंह शर्मा, खरगपुर द्वारा ज्ञात ] .