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मिश्रबंधु

मिश्रयंधु-विनोद सं० १६६५

कापै 'गदाधर' जात कही उपमान लहै भरी सुंदरी जोम की; घाँघरे में छबि जंधन की मनो बत्ती जलें फनूस में मोम की । मंद-मंद शीतल समीर कढ़ि बागन सों .. छुवै छवै के परागन सो अंग परसै लगी. भीतम विदेश, काम प्रगटो शरासन लै, बाढ़ी बिरहागि देह श्रापै भारसे लगी। झरे-झरे द्रुम फेरि पल्लवित लागे होन, फूले - फूले झूलन सुगंध सरसै लगी कोयल कुहुक भौर गुंजरे 'गदाधर' जू , ऐसे मतुराज की अवाई दरसे लगी। नाम--(३६११ ) चंद्रशेखर शास्त्री, प्रयाग-निवासी । जन्स-काल-लगभग सं० ११४० रचना-काल-सं० १९६५ ग्रंथ-- सामाजिक विपयों पर कई ग्रंथ । विवरण- -आप दर्शनशास्त्री हैं। वाल्मीकीय रामायण का अनुवाद भी कर रहे हैं। नाम-( ३६१२ ) पुरुषोत्तमदास खत्री टंडन एम० ए०, एल- एज० बी०, प्रयाग। ग्रंथराजपूत-बीरता, स्फुट लेख इत्यादि । विवरण---आप बड़े ही हिंदी-प्रेमी एवं हिंदी के लेखक तथा प्रचारक हैं। आप बहुत समय तक हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के मंत्री रहे, और उसकी सफलता का विशेष श्रेय आपको है। एक बार श्राप उसके सभापति हो चुके हैं । देश-प्रेम के कारण कई बार जेल गए हैं । राजनीति से प्रांतीय नेतामों में आपकी भी गणना है। नाम-( ३६१३ ) प्रेमचंद (लाला धनपतराय बी० ए०), बनारस।