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मिश्रबंधु

उत्तर नृतन उदाहरण- . 3 . कामना बिहँस उठे चुंबन से कलियाँ, ऐसा सुखद समीर बनूं विश्व-वाटिका को नहलाऊँ, जीवनदायक नीर वनें । सो न बनें, तो पृथिवी-रज वा विस्तृत नभ का तीर बनें। कुछ न सही तो ज्वलित आग की प्रबल लपट बेपीर बनें। किसी भाँति इस बंधन से हो करके पार वहाँ जाऊँ जावन के संवरण-बहाने चिर जीवन को मैं पाऊँ । अनुनय मैं कबसे हूँ यहाँ बैठकर तेरा ही पथ हेर रही। जरा ठहर जा प्रवल अनिश ! अब केवल थोड़ी देर रही। क्यों ? यह भले समझ सकते हो, ज्वालाएँ घर घेर रहीं मैं न रहूँगी, जब देखोगे, शेष राख की ढेर रहीं। तब तुम करना यही उड़ाकर उस विभूति को बतलाना; पहुँचे जिसले उन चरणों तक, अपने सँग लेते जाना । प्रतिसमवेदना क्यों निकालती हो ये मोती? यों धर को सूना न करो मत रोमो मेरी खातिर, यो रोकर दुख दूना न करो। मुझे हुना है क्या ? तुम नाहक अपना मन जना न करो भले ध्यान में बैठी हूँ मैं, उसको तुम नूना न करो। बुरी चेतना जब तक थी सँग, वह भी सुझसे न्यारा था . उधर भगाया मैंने उसको झट श्राया जो प्यारा था। नाम-( ३६२ ) लक्ष्मीधर वाजपेयी, मैथा, जिला कानपुर। जन्म-काल-स.११४४ । रचना-काज-स. १९१६ j