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मिश्रबंधु

मिश्रयंधु-विनोद सं० १९६७ विवरण-आपने शालोपयोगी भारतवर्ष, दासबोध, रामदास- चरित, हिंदी मेघदूत आदि लगभग ३० ग्रंथ लिखे हैं । श्रार्यमिन्न तथा हिंदी-चित्रमय-जगत् का संपादन भी कर चुके हैं । श्राप हिंदी के लब्ध-प्रतिष्ठ लेखक और कवि तथा निरभिमानी एवं सहृदय साहित्य-सेवी हैं । अाजकल दारागंज, प्रयाग में तरुण-भारत-ग्रंथावली का संचालन एवं प्रकाशन करते हैं। समय- -संवत् १९६७ नाम-(३६२२) चंद्रभानुसिंह दीवान बहादुर, गरौंली, बुंदेलखंड। जन्स-काल- -लगभग सं० १९३५। रचना-काल-सं० १९६७ । आपकी गणना स्वतंत्र रईसों में है। श्राप हिंदी के प्रेमी हैं तथा कविता भी उत्कृष्ट करते हैं । आपने एक दोहा-सतसई लिखी है। आध्यात्मिक विषय में आपके बहुत गहन एवं गंभीर विचार हैं। हमारे मित्र भी हैं। आपकी रचना प्रशंसनीय है । उदाहरण----- उझकि मिझकि सकुचत हँसत लसत दृगन रतनाह; लचत मचत चलिबो चहत्त बनत न कछु मनमाह । छिन बैठत छिन-छिन उठत, भुज उठाय जसुहात अरी सखी, यह गात की बात कही नहिं जात । श्वेत चंद सब ही कहत श्याम चंद नहिं जोत सुने जे गोकुल में हते उदय सु पच्छिम होत । मुरलीधर मुरली धरी मुरली धरत बनै न; मुरलीधर मुरली धरें मुरली धरत न बैन । बनसी बनली बन बसी वाबन बसी विशेष बन बिनसी बन बन बसी बनसी बनसी भेष । . 3