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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद लाला दे की सपत्नी थीं। इनकी कविता राजस्थानी मिश्रित हिंदी में हुआ करती थी। नाम-(१६४) मोहनदास । रचना-काल-सं० १६५० के लगभग । नंथ-(१) सोरठावली, (२, दोहावली, (३) रागावली, (४) विश्वब्रह्मज्ञान, (५) बारहमासा, (६) कवितावली, (७) सवैयावली। विवरण-~-श्रीयुत भालेरावजी का कथन है कि यह कवि ग्वालियर- राज्यांतर्गत तवरधार-प्रांत के निवासी गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी के समकालीन । आप मोहन-पंथ-नामक निर्गुणी मत के तपादक कहे जाते हैं। भालेराबजी महाशय को बहुत-से छंद इन के प्राप्त कविता-काल- " 3 (१८६) नाम- -चतुर्भुज कवि, ओरछा। जन्म-काल-अनुमानतः १६२० वि० । १६४७ वि.। तत्कालीन महाराजा श्रीवीरसिंहदेव प्रथम के आश्रित । उदाहरण- सेत चमर चिलकंत दंत डगमगत डगत डग शीश हलत तन डुलत चित्त चिल मिलत धरत पग । दग्ग झरत श्रुत अश्रुत वास नासा भ्रम भुल्लिय ; काल ढिकह दुझियह आन यह औसर चुक्किय । पहि न राम 'चत्रभुज प्रबल, रहब सकल दिन दुरद वर सुभझह असुमझ संझह फजर, है कछु सबर कि बे खबर । सोरठा अरे सिंहा वीर, नेक न चितवत डोकरा पातक नसत शरीर, जब.थारा सुख दिक्खियाँ ।

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