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मिश्रबंधु

सं० १९७० उत्तर नूतन ३८१ उदाहरण-

छाया सावधान हो, पद रखता हूँ फिर भी तव कोमल काया ; बार-बार है दलित हो रही क्यों ऐसे चलती छाया । रबि की किरणें तुली हुई हैं करने को मेरा अवसान ; तेरे चरणाश्रय में मुझको जीवन मिलता पथिक ! सुजान । मैं सुरसरि-हिय में छलक रही है मेरे ही आँसू की धार । नव वसंत की बर सुपमा में बिखरा है मेरा शृंगार । वही जा रही मलयानिल में मेरी ही चंचल निश्वास इस प्रफुल्ल शतदल में विकसित है मेरा हो हास-विलास । नील-गगन की सघन घटा में छिपा हुआ है मेरा चंद ; बालक के पावन मुख में है प्रतिबिंबित मेरा अानंद । कोयल के इस कलित कंठ में प्रतिध्वनित है मेरा गान ; इस असीम की सीमा में परिमित है मेरा ही अवसान । नाम-( ३६४२) चतुरसिंह राष्ट्रवर बोका श्रृंगोत, पो० नेहर, सरदार शहर, रियासत बीकानेर । जन्म-काल-सं० १९४०। कविता-काल-लगभग सं०. ग्रंथ-अर्वाचीन-प्राचीन-सोरठा-संग्रह ( सरस्वती-प्रेस, भावनगर में मुद्रित, सं० १६७३)। विवरण-श्राप ठाकुर बस्तावरसिंहजी के पुत्र तथा ठाकुर मुकन- सिंह खांप दीका गोत के पौत्र हैं । अाजकल यह महाशय कस्बा सरदारशहर, रियासत बीकानेर में सब-इंस्पेक्टर-पुलिस हैं। हिंदी. भापा के अच्छे ज्ञाता है। इनकी समस्या-पूर्तियाँ और स्फुट कविताएँ ०.१६७० ।