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मिश्रबंधु

सं०.१६७० उत्तर नूतन ३८३. नाम-(३६४४ ) जो० एम० पथिक । श्रापका पूरा नाम गौरीशंकरजी शुक्ल है । उच्च शिक्षा प्राप्त कर ६. लेने पर श्रापका प्रधान ध्येय अपनी मातृ-भापा के साहित्य की पूर्ति करना रहा है। इनकी रचनाओं के प्रधान विपय व्यापारिक तथा सामाजिक हैं । व्यापार, उद्योग और अर्थशास्त्र-जैसे गहन विषयों पर इन्होंने लगभग चौदह ग्रंथ रचे हैं, जिनमें से मुख्य करेंसी, स्टाक एक्सचेंज, शिल्प-विज्ञान, व्यापार-संगठन-रीति, भारतीय कपड़े का व्यापार, भारतवर्ष के उद्योग-धंधे, भारतवर्ष के बैंक आदि है । साम- यिक हिंदी, अंगरेजी तथा बँगला पत्रों में आपके व्यापारिक लेख. समय-समय पर निकला करते हैं। हिंदी-साहित्य-सम्मेलन की परी-- क्षाओं पर भी इन्होंने विशेष रूप से प्रांदोलन किया है, और इस उपलक्ष में ग्वालियर में सरस्वती-पुस्तकालय स्थापित हुआ है। हिंदी-साहित्य के व्यापारिक अंग की आप अच्छी श्री-वृद्धि कर रहे. हैं। 'धर्माभ्युदय' तथा 'व्यापार' पत्रों का संपादन भी आपने सुचारु. रूप से किया है । श्राप हमारे परमोपयोगी, श्रमशील तथा उच्च श्रेणी के लेखक हैं। नाम-( ३६४५) देवीदत्त शुक्ल, साँईखेड़ा, जि० उन्नाव । जन्म-काल-लगभग सं० १९४२ । रचना-काल-सं० १९७०। विवरण- यह हिंदी के अच्छे लेखक तथा 'सरस्वती' के संपादक हैं। 'किंकर' नाम से कविताएँ भी लिखा करते हैं। नाम--(३६४६) प्रेमकुँवरि महारानी, दतिया । जन्म-काल-सं० १९४५ । ग्रंथ-(१) चंद्रप्रकाश, (२) स्फुट पद । विवरण-राधावल्लभीय शिष्या । रचना अच्छी है।