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मिश्रबंधु

सं० १९७० उत्तर नूतन दिए, तथा बहुआरा-ग्राम में राष्ट्रीय पाठशाला स्थापित की। साथ- ही-साथ आपने धोसपदेशक का कार्य भी किया । सं० १९६६ में यह अपनी धर्मपत्नी-सहित नेटाल गए । दक्षिण आफ्रिका के मुख्य- मुख्य स्थानों में आपने भ्रमण करके वहाँ के प्रवासी भारतवासियों की सामाजिक तथा राजनीतिक सेवा की है। इन कार्यों के अतिरिक्त आपने वहाँ हिंदी-प्रचार का देश-व्यापक आंदोलन किया, और कई स्थानों में हिंदी-प्रचारिणी सभाएँ भी स्थापित की । आप हिंदी- आर्य-याश्रम के प्रिंसिपल भी रह चुके हैं । जमिस्टन में श्राप कुछ काल तक इंडियन यंगमैन एसोसिएशन के सभापति रहे । वैदिक धर्म पर आपकी अटल भक्ति और श्रद्धा है। आपने नेटाल में वैदिक संस्कारों की उत्तमता तथा पवित्रता का ऐसा प्रतिपादन किया है कि वहाँ के विधर्मी भी आपके सिद्धांतों को देखकर चकित रह जाते हैं। श्रापको समाचार-पत्रों से बचपन से ही प्रेम रहा है। जब भारत में थे, उस समय कुछ काल तक श्राप पटना से निकलनेवाली आर्यावर्त' मासिक पत्रिका के सहकारी संपादक रहे । नेटाल पहुँचने पर वहाँ के प्रसिद्ध पत्र 'इंडियन ओपीनियन' के हिंदी-अंश के संपादक बनाए गए। इसके अतिरिक्त आपने वहाँ 'धर्मवीर' पन्न का भी योग्यता-पूर्वक संपादन किया, अथच 'हिंदी'-पत्र का संपादन कर रहे हैं । आप एक बड़े देशाभिमानी; स्वार्थ-त्यागी, तथा हिंदी-भाषानुरागी पुरुष हैं। दक्षिण आफ्रिका के प्रवासी भारतवासियों की सेवा आपने तन, मन, धन से की है । आपका यह परिचय हिंदी'-पन्न (दिसंबर, १९२२ की संख्या ) में प्रकाशित श्रीसत्यदेवजी, प्रधान, आर्य-युवक-संस्था के लेख के आधार पर दिया गया है। नाम--(३६४६) भालेराव (भास्कर रामचंद्र), ग्वालियर। जन्म-काल-लगभग सं० १९४०।