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मिश्रबंधु

सं.१९७० उत्तर नूतन रचनाओं में कुछ कमी से आई है। देखने में तो पांडित्य अच्छा नज़र - श्राता है, किंतु काव्य-कौशल की दृढ़ता का परिपाक उस ऊँचे दर्जे का नहीं है, जो साधारण पाठकों में फैले हुए आपके साहित्यिक यश की यथावत् पुष्टि करे। इतना समझे रहना चाहिए कि हम गुप्तजी की कवित्व-शक्ति की अवहेलना नहीं करते, वरन् उनकी प्रशंसा सुक्ल कंठ से ऊपर हो चुकी है। फिर भी ध्यान-पूर्वक पढ़ने से हम इनके ग्रंथों में उस ऊँचे दर्जे का गौरव नहीं पाते, जो यथावत् पारोचन के लिये आवश्यक है । न तो किसी नवीन कथा का आपने अच्छा चस- कार ही दिखलाया है, न कविता का परमोच्च नादर्श । साधारण- तया हम भी आपको सत्कवि मानते हैं । आपकी भाषा उच्च कोटि की है, तथा भाव भी अनेक स्थानों पर उत्कृष्ट हैं। आपने हिंदी माता की प्रशंसनीय सेवा की है । कथानक की पुष्टता एवं रस-परि- पाक ये दो गुण भी यदि आप ला सकते, तो वास्तव में स्तुत्य कवि होते । अभी तो आपमें हमें भाषा-मात्र का गौरव देख पड़ता है, सो भी कुछ रौक्षता के साथ । यदि कई ग्रंथों का लोभ छोड़कर श्राप प्रायः ७०० पृष्ठों का एक ग्रंथ निकालें, तो शायद अधिक स्थायी साहित्य रच सके। नाम---( ३६५३ ) रमाकांत मालवीय, प्रयाग । जन्स-काल-लगभग सं० १९४५ रचना-काल-सं० १९७० । विवरण-श्राप हिंदी साहित्य-सम्मेलन के कई साल प्रधान मंत्री रहे, और उत्साही लेखक तथा कार्यकर्ता हैं। नाम--(३६५४ ) रमाशंकर अवस्थी, कानपुर जन्म-काल-सं० १९४01 रचना-काल-सं० १९७० । श्राप दैनिक 'वर्तमान' के संस्थापक एवं संपादक तथा हिंदी- ।