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मिश्रबंधु

३६२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १६७० नाम--( ३६५८ श्रा) श्रवणप्रसाद मिश्र 'श्रवणेश', फुटेरा, (झांसी)। जन्म-काल-सं० १९५१ । कविता-काल--सं० १९७० । ग्रंथ भक्त-मन-रंजन-चंद्रिका । विवरण-कवों हु केशव के वंशज । संपादक प्रजामित्र झाँसी और सनाच्या हितकारी के भूतपूर्व संपादक । उदाहरण- अज्ञान विनासकर देहु बुद्धि बरदान ; जाहिर खगपति-पति सुमिरि पावत सव सन्मान । तारत भवन को सुने, गज नरसी ध्रुवराज ; विनय सुनत ठहरे नहीं, आतुर राखी लाज । जाके पंकज-पदन को अधम करत ही ध्यान---- लहत उच्च पदवी तुरत, भापत बेद - पुरान । नाम-( ३६५६) सुभद्राकुमारी चौहान, संयुक्त प्रांत । अंथ-(१) स्फुट कविता, (२) बिखरे मोती। विवरण- -यह मध्यप्रांतीय कांग्रेस के वर्तमान मंत्री ठाकुर लक्ष्मण- सिंहजी की धर्मपत्नी हैं। इन्होंने सम्मेलन से दो बार उत्कृष्ट कविता के लिये पुरस्कार पाए हैं। उदाहरण-- कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने, पदों को पूजने ही के लिये थी साधना मेरी । तपस्या, 'नेम, व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने, पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी । तुम्हें सहसा बिलोका सामने, संकोच हो पाया, मुँदी आँखें सहज ही लाज से नीचे झुकी थी मैं ।