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मिश्रबंधु

सं० १९७१ उत्तर नूतन j झटका देकर छुड़ा रहे हो मुझसे अपना हाथ ; हृदय न मेरा त्याग सकोगे स्वामी! सुखमय साथ । नीति सुंदर सुखकारी है। धर्म का बंधन भारी है। अंतिम भेंट चढ़ाकर तुझको निकल रहे हैं प्रान; साथ सदा ही रखना होगा हे मेरे भगवान ! चरण पर जीवन धरती हूँ तुम्हारा पीछा करती हूँ। नाम-(३६६४) जनार्दन भट्ट एम० ए० । जन्म-काल--सं० १९४६ । ग्रंथ-(१) संस्कृत-कवियों की अनोखी सूझ, (२) अशोक के धर्मलेख, (३) बौद्धकालीन भारत, (४) आर्य-चरित्र, (५) श्राकृति-निदान, (६) टालस्टॉय के सिद्धांत, (७) गुलामी से छूटने का उपाय, () हंगेरी में असहयोग । विवरण-यह स्वर्गीय पं० बालकृष्ण भट्ट के कनिष्ठ पुन्न हैं । इन्होंने संस्कृत-विषय लेकर एम० ए०-परीक्षा पास की। भारत के प्राचीन इतिहास से इनको विशेष प्रेम रहता है । जसवंत-कॉलेज, जोधपुर तथा क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर में यह संस्कृत के प्रोफेसर रह चुके हैं। कुछ काल तक इन्होंने सरकारी पुरातत्त्व-विभाग में भी काम किया और इस समय आप माहेश्वरी-विद्यालय, कलकत्ता के प्रधानाध्यापक हैं । यदा-कदा हिंदी के लेख भी लिखा करते हैं। बहुतेरे लेख 'माधुरी', 'सरस्वती', 'प्रभा' आदि पत्रिकाओं में निकल चुके हैं । ग्रंथों के विषय आपने देश-प्रेम लिए हुए चुने हैं। प्राचीन भारत का गौरव दिखलाने का भी सफल प्रयत्न किया है। नास-(३६१४ अ) पंडित द्वारकाप्रसाद शुक्ल (उपनास शंकर कविं), रायबरेली-निवासी।