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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७३ की। तहसील शाहगंज, जिला जौनपुर में इनका स्थापित किया हुआ साहित्य-सागर-नामक एक पुस्तकालय है। श्राप नाटककार तथा सुकवि हैं। उदाहरण--- पाठक प्रथम अधु-वर्षा कर जर्जर हृद को शांत करो पुनः आधुनिक अन्यायों के अनुशीलन वृत्तांत करो। केवल एक कहानी दुखदा मैंने वर्णन की उनकी लाखों होते हश्य जगत् सें, हो न सकी गणना जिनकी । अनुचित अधिक कुरीति विश्व में विप-वल्ली-ली फैल रही; अनुदिन अक्षुण होता जाता, घटता ही है मैल नहीं। बड़ी श्रभागी कन्याएँ हैं, सुख सस्तक में लिखा नहीं, शिक्षा, कौशल, कला सीख लें हो सकता है भला कहीं। (कृष्णकुमारी से) नाम---(३६७६) गणेशशंकर विद्यार्थी, कानपुर । जन्म-काल-लगभग सं० १९४८ रचना-काल-ल. १६७३ । मृत्यु-काल-लगभग सं० १९८७ । विवरण--कानपुर के गत दंगे में अनाथों की रक्षा करते हुए दुष्टों द्वारा वीर-गति को प्राप्त हुए । 'प्रताप' साप्ताहिक तथा दैनिक पत्र के संपादक थे । बड़े उत्साही तथा उत्कृष्ट गद्य-लेखक एवं वक्ता थे। इनकी जिह्वा में बल था। अनाथों के लिये प्राण तक देकर श्रापने अनुपम शौर्य तथा जाति और देश-प्रेम के उदाहरण दिखलाए । जिस जाति में ऐसे नर-रल हों, वह शतमुख से सराहनीय है । उसका पतन नहीं हो सकता । हिंदी को ऐसे शूर को लेखक-रूप में पाकर गर्व है। हिंदी-लेखन में भी आपका पद बहुत ऊँचा है। नाम-(३६७७ ) झावरगल्लजी, कलकत्ता।