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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण www - उदाहरण- जावत है सब लोक यहाँ ले, आवत नहिं जन कोउफिरी 1 राव राना से बड़े सट पंडित, कोऊ न दे पट को पतरी । धन, दारा, सुतादिक रहत परे, मानीनता देह-संग बरी; इतनी तो अपने नयन तै देखि, और 'अखा' सन ने एकरी। नाम-(3) हरिसिंह महाराजा। ग्रंथ-उपा-हरण। रचना-काल-सं० १७०५ । विवरण - यह महाशय गहलोतवंशीय महाराजा पूरनसल के पुन्न थे। नाम-(३५६) रूपसिंह (महाराजा)। जन्स-काल-सं० १६८५ बबेश नास में। विवरण - संवत् १७०१ में महाराजा हरीसिंहजी के भतीजे होने के कारण किशनगढ़-राज्य के अधिकारी हुए । बल्लभाचार्यजी के शिष्य गोपीनाथजी के शिष्य थे। शाहजहाँ के दरबार में आपका बड़ा मान था । दारा के सहायक होने के कारण धौलपुर के युद्ध से बीर-गति को प्राप्त हुए । वीर होने के अतिरिक्त कविता-प्रेमी तथा स्वयं कवि थे। उदाहरण- बन ते बानक बनि बज आवत । बेनु बजाय रिझाय जुवति जन गौरी रागहिं गावत । बारिज बदन लाल गिरिधर को निरखि लखी सनुपावत। रूप काराक्ष करत प्यारी पर रूपाहि मन अति भावत । नाम---( ३१६ ) केहरि, महाराष्ट्र-प्रांत । थ-फुट। कविता-काल-सं० १७१० ।