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मिश्रबंधु

सं० १९७५ उत्तर नूतन ३ । समय प्रयाग-विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राचार्य हैं। नच प्रथा की बढ़िया कविता रचते हैं। उहाहरण देश-दशा का ध्यान हृदय में होवे प्रतिक्षण 1 उसकी सेवा-हेतु बहें चाहे शोणित-कण । तन-मन-धन सर्वस्व देश-हित होवे अर्पण सुख से संकट सहूँ यही मुख से निकले प्रण। भारत के शुभ नाम की माला हाथों में लसे हृदय-कमल में देश की सेवा-भ्रमरी प्रा फंसे। आह ! हमारे हाथों से लुट जावे जीवन-धन कैसे ? प्रेम-मुधा से सिंचित उपवन बन जावे हा ! वन कैसे ? दुख-दोषों के महातिमिर में छिप जावे विधु-मन कैसे ? अपनी आँखों ही के सम्मुख मा का धोर पतन कैसे ? समय-संवत् १९७५ नाम-~~(३६८२) गुरुभक्तसिंह (भक्त) ठाकुर । जन्म-काल-सं० १९५० । ग्रंथ-(१) भल्ल - मंजरी, (२) प्रेम-पाश - नाटक, (३) सम्मिलन । विवरण -यह जमानिया, ज़िला ग़ाज़ीपुर-निवासी डॉक्टर कालिकाप्रलादसिंह के पुत्र, बलिया के प्रसिद्ध रईस तथा हिंदी के कवि एवं प्रेमी हैं। आपकी खड़ी बोली की रचना काव्यत्व की कमनी- यता से मंडित है। उदाहरण- इसे रुलाया, उसे हँसाया, कहीं वृक्ष को दिया ढकेल इसे हिलाया, उसे सुलाया, क्या अद्भुत है तेरा खेल । 3