पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/४१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१४
४१४
मिश्रबंधु

सं० १९७५ उत्तर नूतन १०8 1 विवरण--श्रध्यापक सवाई महेंद्र-हाईस्कृल, टीकमगढ़। उदाहरण:- अमिलापा प्रभो, अवेगा कब वह काल ? जब कि राजनीतिक सामाजिक संस्थानों के कार्य सर्वहितंकर विश्वबंधुता से होंगे निर्धार्ग । मित्रता होगी एक विशाल . प्रभो, श्रावेगा कब वह काल ? ॥१॥ जव श्राभ्यंतर शत्रु विजय से घोतित होगी शक्ति सदाचारसय सत्प्रवृत्ति जब व्यक्त करेगी भक्ति । निष्कपट होगी सबकी चाल प्रभो, श्रावेगा कब वह काल ? ॥२॥ नाम--( ३६८५) तोरनदवी शुक्ल ( लली), लखनऊ। जन्म-काल-~सं० १९५३ । रचना-काल-सं० १९७५ ग्रंथ-साहित्य-चंद्रिका। विवरण-याप लगभग पंद्रह वर्ष से साहित्य-सेवा कर रही हैं। स्त्री-कवियों में श्रापका स्थान ऊँचा है। नाम-(३९८६ ) दयाचंद्र गोयलोय । ग्रंथ-(१) मितव्ययता, (२) युवाओं को उपदेश, (३) शांति- वैभव, (४) अच्छी आदत डालने की शिक्षा, (१) चरित्र- गठन और मनोवल, (६) पिता के उपदेश, (७) पानाहास- लिंकन । विवरण--श्राप अग्रवाल जैन तथा लखनऊ-कालीचरण-हाईस्कूल के हेडमास्टर थे । जाति-प्रबोध-नामक मासिक पत्र भी आपने निकाला था। श्रापका देहांत हो गया है।