पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१५
४१५
मिश्रबंधु

११० मिनबंधु-विनोद सं० १९७५ ०बी० । नाम-(३९८७) देवीप्रसाद गुप्त कुसुमाकर बी० ए०, एल- एल० जन्म-काल-सं० १९५० । रचना-काल-सं० १९७५ ग्रंथ-(१) इतिहास-दर्पण, ( २ ) अमेरिकन संयुक्त राज्य की शासन-प्रणाली, (३) स्वराज्य, कबीर और होली, ( ४ ) उपाधि की व्याधि, (५) कला में गुलज़ार, (६) दुर्गावती नाटक, ( ७ ) कुसुमाकर-विनोद, (= ) बना हुआ गवाह, ( 8 ) भारत की स्वतंत्रता, (१०) हमें स्वराज्य क्यों चाहिए, (११) केसर शतक, (१२) दो सती बालाएँ। विवरण-सोहागपुर-निवासी तथा जाति के वैश्य हैं । होशंगा, बाद में आप वकालत करते हैं । देश-प्रेम-पूर्ण तथा उपयोगी प्रथ रचे हैं । फड़का देनेवाली रचना की है उदाहरण- किस दुखिया का हृदय फटा, यह कड़का बादल कैसा ? बिजली बनकर तड़प रहा है, कोई घायल कैसा! किसके आँसू बहे आज, ये पानी बरस रहा है नभ में चारो ओर दुःख-ही-दुख अब दरस रहा है ? इंद्र-धनुष को उठा लिया है किसने आज कुपित हो ? तारों ने आँखें मीची है, जिसरले हृदय व्यथित हो। घमासान घन उमड़ रहे हैं, सेना यह बढ़ती है किस दुखिया घायल पर फिर-फिर धावा कर चढ़ती है। नभ में छाई है यह लाली किसका रुधिर बहा है; बीरबहूटी बन करके जो भू पर टपक रहा है नाम-(३९८८ ) धन्यकुमार जैन, उपनाम 'सिह' । ग्रंथ-वसंतकुमारी। । 3 ।