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मिश्रबंधु

४१२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७१ जन्स-काल-सं० १६६० (विजयादशमी)। मृत्यु-काल-सं० १९७७ । ग्रंथ-(१) प्रह्लाद ( खंड काव्य ), (२) गंधर्व, (३) बिहार का इतिहास (अपूर्ण), (४) प्रेमांजलि, (५) स्मृति, (६) ब्रह्मचर्य। विवरण-यह वाबू. ठाकुरप्रसादनी चौधरी के सुपुत्र थे। इन्होंने अल्प जीवन-काल में अपनी प्रखर बुद्धि एवं प्रतिभा द्वारा हिंदी-भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। मैट्रिक-परीक्षा में हिंदी-विषय में सर्व- श्रेष्ठ उत्तीर्ण होने के कारण इनको पटना-विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक प्राप्त हुआ, किंतु इस फल के प्रकाशित होने के दो सप्ताह पूर्व ही इनकी अकस्मात् मृत्यु हो चुकी थी। बड़े देश-प्रेमी, उदार-हृदय पुरुष-रत थे। उदाहरण- जाता हूँ मैं स्वर्ग को देकर यह संदेश--- गाकर मेरे गीत को करना सुखी स्वदेश । स्वदेश प्रियतम स्वदेश ! लोक - विदित बंध देश ! चीर देश, आदि सभ्य, विश्व-ज्ञानदाता! महिमा तव अति अपार । पावें कविगण पार। सृष्टि द्वार सुखसा-घर भारत-जन त्राता! स्वामि ! पा "विभूति'-दास रहते तुम क्यों उदास ? व्यर्थ त्रास, निर्भय हो स्वर्ग-लोक भ्राता!