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मिश्रबंधु

सं० १९७५ उत्तर नूतन का i जीवनोइंश यह दुलंभ नर-देह व्यर्थ में हमैं न खोना; मर्त्यलोक में बीज अमरता सुख में हँसना नहीं, न है दुख में कुछ रोना; रहै हमारे साथ सदा वह श्याम सलाना । अपने हित करना नहीं हमको कुछ अब शेप है; करना सुखी स्वदेश को जीवन का उद्देश है। जैले हो ग्रण प्राण-संग निर्वाह करेंगे। कभी विघ्न-भय की न तनिक परवाह करेंगे। नर को पूछे कौन, काल से भी न डरेंगे जनमें जिसके लिये, उसी के लिये मरेंगे। भूले-भटकों के लिये यह 'विभूति-संदेश है करना सुखी स्वदेश को जीवन का उद्देश है। जैसे हो भरना हमें निज भाषा-भंडार; एकमात्र बस है यही देशोन्नति का द्वार । नाम-(२६६२) मोहनलाल मेहतो गयावाल । ग्रंथ---(1) निर्माल्य, (२) एकतारा, (३) रेखता । विवरण---आप पंडित श्यामलाल मेहतो गयावाल के पुन हिंदी, उर्दू, बँगला, मराठी, अँगरेज़ी और संस्कृत से परिचित हैं। व्यंग्य-चित्रकार भी हैं। खड़ी बोली तथा प्रज-भापा दोनो में कविता करते हैं । छायावाद पर कई पुस्तकें बना चुके हैं। अच्छे और उत्साही कवि हैं । छायावादी कवियों में आपका उच्च श्रासन है। उदाहरण- चंद तथा प्रतिमा हल चंद की दै अपनी खर ज्योति उज्यारी, भावुक भाव के हाथन सों सब भाँति सँभारिसमारि सँवारी।