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मिश्रबंधु

१९७५ उत्तर नूतन .. उदाहरण- डोलने लगी मधुर मधु वात, हिला तृण, बतति, कुंज, तरू, पात , दोलने लगी प्रिये, मृदु वात, गुंज मधु गंध धूलि हिम गात । खोलने लगी शयित चिरकाल, नवल कलि अलस पलक दल जाल घोलने लगीं डाल से डाल, प्रमुद पुलकाकुलं कोकिल बाल । नाम -(४००३) हरप्रसाद (वियोगो हरि)। जन्म-काल-लगभग सं० १९५० । कविता-काल-सं. १६७१ । ग्रंथ-(१) वीर-सतसई, (२) अंतर्नाद आदि कई अन्य ग्रंथ । विवरण-आप रियासत छत्तरपुर के रहनेवाले हैं, किंतु बहुत दिनों से प्रयाग में रहते हैं । गद्य और पद्य दोनो में अच्छी रचना करते हैं, किंतु विचार कुछ-कुछ प्राचीन हैं । निर्धन होकर भी आप बहुत उदार पुरुष हैं । वीर-सतसई में नए भाव नहीं हैं, किंतु अंतर्नाद अच्छा ग्रंथ है। १६६१-७५ के शेष कविगण समय-संवत् १९६१

नाम---(४००४ ) ऋषिलाल साह कलवार, महोली, जिला

सीतापुर। . - जन्म-काल-सं० १९३६ । ) '! ग्रंथ--(1) शृंगार-दर्पण, (२) पिंगलादर्श. (३) विज्ञान प्रभाकर, (४) अलंकार भूपण, (२) निदान-मंजरी । ५ नास--( ४००५) कृष्णचंद्र । । । जन्म-काल-सं० १९३६ । मृत्यु-काल-सं० १६७६ । ग्रंथ--(...). पद्यानुवाद वाल्मीकीय रामायण (सुंदरकांड), (२) गद्य-पद्यमय अनुवाद -भवभूति-कृत उत्तर रामचरित, ( ३ ) मालती- माधव का अनुवाद (कुछ अंश), (४) महावीर-चरित का अनुवाद। . . ."