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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण ३६ . नाम-(४३°) मानसिंह, महाराष्ट्र देश । समय-सं० १७१७ ॥ ग्रंथ-स्फुट पद। विवरण- -आप श्रीशिवाजी महाराज के समकालीन थे। महाशय भालेरावजी का कथन है कि आपकी बहुत-सी हिंदी-कविता उनके पूना-निवासी मित्र मुजूमदार के संग्रह में है। यह कवि संभवतः नाथ-पंथी थे। उदाहरण- बिगरी कौन सुधारै रे, नाथ बिन बिगरी कौन सुधारै रे। बनी बनी का सब कोइ साथी, बिगरे काम न आवै रे । भरी सभा मों लज्जा राखी, दीनानाथ गुसाई रे । भली-बुरी यह दोनो बहिनें परंपरा से आई रे नाथ जालंदर मुद्रावाले 'मानसिंह' जस गाई रे। नाम-(४१३) जगन्नाथ जोशी, जैसलमेर (मारवाड़)। रचना-काल-सं० १७१८ । ग्रंथ-कोक-भूषण (कामशास्त्र)। विवरण-आपने उक्त ग्रंथ जैसलमेर के महाराजा श्रीअमरसिंहजी की आज्ञा से बनाया। नाम-(२१) बख्तावरसिंह, सकेसर, (खुरासान-देश के अंतर्गत)। ग्रंथ-राम-विनोद । रचना-काल-१७२० । इस विषय में कवि ने इस प्रकार उल्लेख किया है-- "गगन पाणि फुनि दीप शशि,

शुक्लौ पक्ष त्रयोदशी, बुद्धवार दिनु जास 1" " विवरण-ग्रंथ में वैद्यक का कविता-बद्ध वर्णन है। . मरु तिथि मृगसर मास