पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४९३
४९३
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं. १९७५ 'पालक पन तथा हिंदी-पुस्तक-भांडार, लहरियासराय के श्राप नाम-(४२७८) मुंशी लक्ष्मीनारायणजी। जन्म-काल-सं० १९५० । रचना-काल--सं० १९७५ । विवरण-यह जाति के माथुर कायस्थ हैं, तथा अपील-कोर्ट के जज थे। हिंदी-कविता के विशेष प्रेमी हैं। उदाहरण- धन्य घटी सु घटी ही रही औ' भरी ही रहौ भरपूर बधाई ; जारी रहौ झकझोरन सौं मुद-मंगल की सरसा बरसाई । ध्यान रहौ जन दीनन पै यह नीतिक रीति सदा चलि आई; पूर प्रभात समान से भार विकासहु तै यह लेहु बधाई। नाम-( ४२७६ ) लक्ष्मीनिधि मिश्र 'विशारद', 'हिंदी- प्रभाकर' मैनपुरी। जन्म-काल-लगभग सं० १९६१ कविता-काल-सं० १९७५ । ग्रंथ-स्फुट कविता। ,विवरण-यह पं० कालिकाप्रसाद के पुग्न हैं । इनकी कविता प्रायः ब्रजभाषा में हुआ करती है। उदाहरण- छाई रहै चहुँ ओर पीत-पीत पुष्प-वृंद, सोई मनु पीत, वस्त्र गात पै सुहायो री; कोकिला कला सो उचारै मनु वेद-धुनि, कर में कमंडल कदंबन को भायो री ! बौर-बौर सुदर : रसाल चहुँ ओर सोई, पहिरे गरे मैं माल मोद उर छायो री,