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मिश्रबंधु

. ४६० सं० १६७६ मिश्रबंधु-विनोद थ-(१) मानव-धर्म-संहिता, (२) जैन तीर्थ-गाइस, (३) उपदेश-दर्पण। विवरण-श्वेतांबर-संप्रदाय के साधु । बयालीसवाँ अध्याय १६७६-१६६० आजकल अाजकलवाले लेखकों के साथ पूरा न्याय 'असंभवप्राय है, क्योंकि अभी तक उनकी पूरी प्रतिभा प्रकट नहीं हुई है, अथवा बहुत कम लेखकों में उसका पूरा विकास कहा जा सकता है। इन कवियों में से बहुतेरे ऐसे हो सकते हैं, जिन्हें हम आज साधारण समझते हैं, किंतु जिनकी प्रतिभा भविष्य में पूरे तेज के साथ देदीप्यमान हो जाय । इतनी भूमिका अथव क्षमा-प्रार्थना के साथ हम अब इनका वर्णन करते हैं। हम मानते हैं कि बहुतों में बीज रूप से उन्नति के लक्षण प्रकट हैं, किंतु कथन मुख्यतया उन्हीं के होंगे, जिनके बीज कुछ पल्लवित हो चुके हैं । अाजकल के लेखकों में पहला नाम महात्मा गांधी का श्राता है । यद्यपि आप लेखक न होकर ऋषि तथा लोक-नेता है, तथापि हैं हिंदी-लेखक -भी, सो यहाँ भी वर्णन को पवित्र करने के विचार से उनका नाम लिखा जाता है । आप नवजीवन पत्र हिंदी के संपादक थे तथा हिंदी में व्याख्यान भी देते आए हैं । हिंदी-प्रचार आपके द्वारा बहुत अधिक हुआ है । उसके राष्ट्रभाषा माने जाने का मुख्य श्रेय श्राप ही को है । यद्यपि आपका जन्म-काल सं० १९२६ है, तथापि हिंदी- क्षेत्र में आप १९७६ से अवतीर्ण माने जा सकते हैं,. जब "आपने हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापतित्व को पुनीत किया । आपके