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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन अँगरेज़ीवाले अनेकानेक व्याख्यान उस भाषा की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में हैं, जो वहाँ के स्थायी साहित्य में उच्चातिउच्च श्रासन पाने योग्य हैं। गांधीजी का आत्मचरित्र भी बहुत ही उच्च साहित्य का उदाहरण है । यह नथ भी अँगरेज़ी में है, किंतु हिंदी में अनुवादित हो चुका है। इनके राजनीतिक विचारों या कार्यों से कोई सहमत हो या न हो, किंतु चरित्र-बल की महत्ता में इनका सामना करनेवाला मिलना बड़ा कठिन है। औरों की कौन आहे, हमारे भारत में रामचंद, श्रीकृष्ण, गौतमबुद्ध और गांधी-नामक जो चार महापुरुष हुए हैं, उनमें बड़ा-छोटा कौन है, ऐसा तक निर्णय करना कठिन है। यह मत हमारा ही नहीं है, बरन् केवल संस्कृत, हिंदी और मराठी जाननेवाले एक परम विद्वान् शास्त्रीजी ने स्वयं हमसे यही मत प्रकट किया था । वर्तमान भारतीयों के प्राचार शुद्धीकरण में ही इन महात्माजी का मुख्य माहात्म्य है । सं० १९७८ में मांटेग्यू महाशय द्वारा ढ़ किए नवीन राजनीतिक संशोधन कार्य-रूप में स्थापित हुए। उनके विषय में देश को अाशा बहुत थी। फिर भी नवीन संशोधन बहुतों को निराशाजनक हुए । देश में प्रचंड आंदोलन फैला । सरकार ने उसे दबाने में जलियानवाला बारा (अमृतसर ) में गोली चला दी, जिससे बहुतेरे आंदोलनकर्ता हताहत हुए । अशांति फैली। महात्मा गांधी का प्रभाव बढ़ा । लार्ड रेडिंग महाशय ने महात्माजी से १९२२-२३ में मालवीयजी द्वारा मेल करना चाहा, किंतु महात्माजी ने उसे मंजूर न किया । कुछ इतरों का विचार इसके प्रतिकूल था। थोड़े ही दिनों के पीछे महात्माजी कारागार में बंद हुए, तथा कांग्रेस का बल क्षीण होता हुआ देख पड़ा, कुछ लोगों को समझ पड़ा कि महात्माजी ने बेजा तनने में भूल की। आईन-सभा चलने लगी। देशबंधुदास तथा मोतीलाल नेहरू ने असहयोग से प्रतिकूलता करके महात्मा की सम्मति के विरुद्ध कांग्रेस