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मिश्रबंधु

मिश्रसंधु-विनोद सं० १९७६ द्वारा आईन-सभा से सहयोग की नीति चलाई । सभा से गोलमेज़ा का प्रस्ताव पास हुश्रा । एक जाँच की समिति ने सुधार-संबंधी विचार पेश किए, किंतु फल कुछ न निकला । देशबंधु का देहांत हो गया, और नेहरू महाशय को कुछ दिनों में समझ पड़ा कि सहयोग से कोई लाभ नहीं । कांग्रेस ने पाईन-सभा की मेंबरी छोड़कर देश में असहयोग चलाया। हजारों लोग खुशी से जेल गए । मांटेग्यू संशो- धन में प्रति दसवें वर्ष उन्नति-संबंधी जाँच का नियम था । जाँच के लिये १९८४ में ही साइमन कमिटी बनाई गई, जिसमें केवल अँगरेज़ सदस्य हुए। कहा गया कि ऐसी जाँचों में कोई भारतीय निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर सकता, सो उनमें से कोई सदस्य होने के योग्य नहीं है । राजनीतिक आंदोलनकारियों का पारा ऊँचा उठा । नरम दलवाले भी असंतुष्ट होकर कमिटी से असहयोग में सम्मिलित हुए। दोनो ओर से गर्मागर्मी हुई । असहयोग ने घोर रूप धारण किया । पुलिस की लाठियां चली । जेल भर गए, किंतु फल विशेष न हुआ । बड़े लाट साहब लॉर्ड इर्विन ने यह दशा अनुचित समझी । सरकार की ओर से एक बार यह भी कहा गया था कि १६७४वाली घोषणा में प्रतिनिधि-बल के जो शब्द थे, उनसे ढोमीनियन-राज्य का प्रयोजन न था । लॉर्ड इर्विन महाशय ने विलायत जाकर घोषणा की कि १९७४वाले प्रतिनिधि-वल से डोमीनियन राज्य का ही प्रयोजन था । विलायत में गोलमेज़ सभा का प्रबंध हुमा । पहली सभा में अच्छा काम हुआ, जिससे भाशाएँ जागृत हुई। महात्माजी तथा अन्य कांग्रेसवाले जेल से मुक्त हुए तथा बड़े लाट से महात्मा का समझौता हुन्ना । दूसरी गोलमेज़ सभा में महात्मा भी विलायत पधारे, किंतु इतने ही बीच वहाँ मज़दूर- 'दल पद-व्युत्त हो गया, और प्रायः टोरियों में राजशक्ति आ गई । दुसरी गोलमेज़ सभा से कोई मनोनीत फल न निकला, यद्यपि