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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन कहने को उसकी सफलता का वर्णन होता रहा । वहाँ से पलटने पर महात्माजी फिर जेल भेजे गए। हिंदू-मुसलमानों का समझौता जब निजू प्रकार से न हो सका, तब सरकार ने आज्ञा द्वारा उसे निवटाया। लोगों का विचार है कि यह आज्ञा मुसलमानों को प्रोर बहुत भुकी हुई है। तीसरी गोल- मेज़ सभा में केवल नरम दलवाले भेजे गए । ह्वाइट पेपर निकला, जिससे अधिकतर भारतीयों को बड़ा असंतोष हुआ । आजकल विलायत में युक्त कमिटी फिर से जांच कर रही है । महारमाजी ने हरिजनों का प्रश्न पहले अनशन-बत द्वारा हल करा लिया, तथा दूसरा अनशन-व्रत उनकी सामाजिक दशा-सुधार के लिये किया । विलायत में बहुतेरे भारतीय गए । टोरियों का एक दल ह्वाइट पेपर के विरोध में स्वता हुआ है, जो कुछ मिल रहा है, वह भी अदेय है। अधिकांश शिक्षित भारतीय लोग, जो कुछ मिलता है, उसे अग्राह्य मानते हैं। कुल बातों को देखकर राजनीतिक समझौता होता हुआ नहीं देख पड़ता है। देश में समाजवाद भी कुछ-कुछ चलने लगा है। रियाया लगान तथा ऋणिया ऋण नहीं अदा करना चाहते । सरकार इन मामलों में नए नियम बना रही हैं, जो धनिकों के प्रतिकूल हैं। कांग्रेस भी उनके प्रतिकूल है । इसलिये धनिकों से कांग्रेस का कुछ बिगाड़ भी है। अधिकार-ध्वंसन-प्रथा ज़ोरों से चल रही है। सस्ताई के कारण ज़मींदारी, महाजनी, वकालत, दुकानदारी आदि सब मिट्टी में मिल रही हैं । देश-दशा बहुत ही अभूतपूर्व है । जैसा अनुभव समाज को शताब्दियों में नहीं होता था, वैसा अब दशाब्दियों में हो रहा है। राजसत्ता तथा पूजीपति दोनो के प्रति बहुत कुछ अशांति है । साहित्य भी इन्हीं विचारों से भरा हुआ लिखी जा रहा है । रोजगार के गिरने से लोगों को काम नहीं मिल रहा है । पढ़े-लिखों की संख्या बहुत बढ़ी है, किंतु