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मिश्रबंधु

१६४ मिनबंधु-विनोद सं० १९७६ । बेकारी तथा दुधा के कारण देश-दशा बहुत गड़बड़ है। सारे संसार में सस्ताई तथा व्यापारिक क्षति से कुछ-कुछ यही दशा भूमंडल की महाशक्तियों अनेकानेक सभाएं कर-करके युक्तियाँ विचार रही हैं, किंतु कोई फल नहीं निकलता । रेल, डाक आदि को आय गिरी हुई है । कोई काम भली भाँति नहीं चल रहा है । देखना चाहिए कि भविष्य क्या सामने लाता है। समझ लेना चाहिए कि हमारे साहित्य में उपर्युक्त दशाओं का प्रतिबिंब प्रायः झलकता है। उसके नेता एक और महात्माजी हैं और दूसरी ओर सरकार । अब साहित्य की प्रधान डोर उठाई जाती है। आजकल के उत्कृष्ट लेखकों अथवा कवियों में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (१९७६ ), रामशंकर शुक्ल रिसाल' (१६८०), कृष्ण- कांत मालवीय ( १९७६), गंगाप्रसाद मेहता ( १९८५), हृदयेश ( १९८५), अनूप( १९८७), कृष्णविहारी मिश्र ( १९७६), रमा- शंकर मिश्र आदि के नाम आते हैं । अाजकल के महापुरुषों में केवल महात्माजी का नाम आता है । मुसलमान लेखकों में पीरमुहम्मद (१९८०) तथा कमरुद्दीन (१९८५) मुख्य है, और स्त्री-लेखिकाओं में पार्वतीदेवी ( १६७७ ), सुशीलादेवी (१९८०), केसर- 'कुमारीदेवी (१९८२), शिवकुमारीदेवी (१९८२), चंद्रावतीदेवी लखनपाल, इंदुमती शर्मा ( १९८६ ) तथा विद्यावतीदेवी (१९८६) के नाम पाए हैं । देश-भक्कों में महात्माजी के पीछे गणेशदत्त शर्मा (१९७६), वशिष्टनारायण (१९८१), मनोरंजनप्रसाद ( १९८२) तथा श्रीरत्न शुक्ल (१९८९) के नाम हैं। इन लोगों ने इस विषय पर ही मुख्यतया रचनाएँ की हैं । व्याख्याताओं में महात्माजी से इतर कोई मुख्य नाम नहीं है । और भी विषयों में महारमाजी का नाम था सकता है, किंतु उनका न कहकर हम भागे से इतरॉ-मात्र का कहेंगे । समाज-सुधार में अवधविहारी