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मिश्रबंधु

सं० १९७५ उत्तर नूतन सूर्यकरण पारीक (१९८७) श्रेष्ठ गद्यकार हैं, तथा निरालाजी (१६७६ ) और जनार्दन झा द्विज (१९८७) छायावादी हैं । इनमें निरालाजी का अच्छा नाम है । इनके कुछ वर्णन बहुत उत्कृष्ठ हैं, किंतु अपने पद्यों का कोई अच्छा संग्रह आपने नहीं छपाया है। परिमल छपा है, किंतु उसमें संग्रह से उत्कृष्ट छंद छूट रहे हैं । वह साधारण पद्य चमत्कार-मात्र दिखलाता है। इनके अच्छे पद्य भी हैं, जो हमने सुने हैं, किंतु अभी वे नय-रूप में प्रकाशित नहीं है , कोई प्रसिद्ध व्याकरणकार नहीं हैं। बालोपयोगी ग्रंथकार शालग्राम द्विवेदी ( १६७७ ) है । सं० १९८५. के लगभग युक्र-प्रांतीय सरकार ने भारी उदारता दिखलाते हुए १०,०००) वार्षिक सहायता देकर हिंदोस्तानी एकेडेमी-नाग्नी एक संस्था प्रयाग में स्थापित की, जिसमें हिंदी तथा उर्दू की उन्नति के काम होते हैं । इसके बहुतेरे विद्वान सभ्य हैं तथा राइट ऑनरेबुल डॉक्टर सर सपू सभापति हैं। इसकी हिंदी और उर्दू की दो तिमाही पत्रिकाएँ निकलती है उर्दू के विषय में यहाँ कुछ कहना अनावश्यक है । हिंदी की तिमाही पत्रिका में बड़े ही गंभीर, खोज-पूर्ण तथा शिक्षाप्रद लेख प्रगाढ़ पंडितों के लिखे हुए निकलते हैं। इस पत्रिका से हिंदी की पत्रिकाओं का गौरव है। एकेडेमी द्वारा प्रकाशित कई पुस्तके बहुत पांडित्य-पूर्ण, उपयोगी तथा आवश्यक विषयों पर बहुत ही महाव-पूर्ण हैं। युक-प्रांतीय विश्वविद्यालयों के कई शिक्षक भी हिंदी की अच्छी सेवा करते हैं, तथा कई अन्य भारी-भारी डिगरी- प्राप्त महाशय एवं नवयुवक लोग भी हिंदी की ओर उचित ध्यान देते अथवा इसकी सेवा में तत्पर रहते हैं । उर्दू में हैदराबाद दक्खिन की उस्मानिया-युनिवर्सिटी ने अनेकानेक विषयों के वैज्ञानिक, दार्शनिक आदि ग्रंथ बनवाकर इसे शिक्षा का माध्यम बना रक्खा है। हिंदी में भी इसी प्रकार के प्रथं बन रहे हैं, और प्रायः २५ वर्षों ।