पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५०९
५०९
मिश्रबंधु

मिशबंधु-विनोद सं० १९७६ धुल जावे रचना-काल--सं० १९७६ । ग्रंथ-(8) प्रेम-मंजरी (संस्कृत-नथ, अप्रकाशित), (२) उद्धव-दूत (अप्रकाशित), (३) गीतार्थ-चंद्रिका । विवरण--यह स्वर्गीय पं. केदारनाथजी के पुत्र हैं। खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा दोनो में समान रूप से रचना करते हैं। इस समय यह लखनऊ में वैद्यक कर रहे हैं। श्राप सुकवि हैं। उदाहरण- नयनांजल में अश्रु-बिंदु जब हतक-छुल भर जाते हों; शुद्ध सीप के मुक्का-फल-सम झलक-झलक भर जाते हों। है हृदयेश ! हृदय जब मेरा तेरे बिन हो अकुलाया; पा जाऊँ मैं पुण्य रूप तव प्रेममयी शीतल छाया । स्वामिन् ! मन-मंदिर जब मेरा नयन-सलिल से 3 बहुत दिनों से लगा कपट का यह कपाट जब खुल जावे । व्याकुल प्रान निकलना चाहे तव दर्शन-हित ललचाया । पा जाऊँ तव पुरुष-रूप को प्रेममयी शीलत छाया । मंजुल मृणाल सो मृदुल भुजमाल त्यागि, कौन ऑति सेली अलबेली गले धारिए; गोकुल-गलीन में गोविंद प्रेम-गीत गाय, नीरस विराग राग कैसे धौं उचारिए। . 'श्रीहरि' सनेही को सँयोग सुख भूलि कैसे, योगिनी बनेंगी निज चित्त तो बिचारि ; कोटि काम सुंदर अनूप श्याम-रूप पेखि, काहि अब ऊधो इन नैनन निहारिए । नाम-(४२८६ ) महात्मा गांधी (मोहनदास-कर्मचंद)। जन्म-काल-सं० १९२६ ।