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मिश्रबंधु

४५ प्राचीन कविगण उदाहरण- पद बच्चा करले विवेक, सबसे सब माँहि एक; अपने कल्प से अपनी माया, प्रपंच मृग-जाल देख । बस्ती देह, जीव शील में, नाना देव अनेक ; निर्गुण मो यह कछु नहिं भाव, केशव कहत अलेख । नाम-(५०) रूप, मेड़ताग्राम, मारवाड़। रचना-काल-सं० १७३१ । ग्रंथ-रस-रूप (नायिका-भेद)। विवरण-आप पुस्करणे ब्राह्मण, रामदास के पुत्र थे। नाम-(५०५) भैरव अवधूत, उपनाम ज्ञानसागर, महाराष्ट्र-प्रांत। ग्रंथ-ज्ञानसागर । कविता-काल-सं० १७४० । मृत्यु-काल-~सं० १८०० । विवरण-यह नागाजी के समकालीन कवि थे। संन्यास लेने के बाद इन्होंने अपना नाम ज्ञानसागरेंद्र रक्खा । यह वेदांती और ब्रह्मनिष्ट थे। उदाहरण- मंगल मूरति नाचत आवे, कोटि सूर्य-सस तेज । विकसति, ज्योति से ज्योति मिलाये; अनहद बाजत सबही बाजे, सोहं तान सुनावे । ज्ञान शिव गुरु सागर, अवधूत आतमभाव वतावे मंगल मूरति नाचत आवे । नाम-(५११) विद्याधर । ग्रंथ-विद्याविलास । ,