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मिश्रबंधु

सं०.१९७६ उत्तर नूतन ५०५ रचना-काल-सं० १९७६ । अंथ-संपादक हिंदी-नवजीवन, साप्ताहिक । विवरण --श्राप भारत के वास्तविक महात्मा है । राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, और गांधी ये चार भारत के महापुरुष हुए हैं। इनमें कौन बड़ा और कौन छोटा है, यह कहना दुस्साहस होगा। आपने सं० १९७६ के सम्मेलन को गौरवान्वित किया । हिंदी को राष्ट्र- भापा बनाने में श्रापका बड़ा हाथ है। भारत में इस समय आप देवता के समान पूजनीय माने जाते हैं। आपके विचारों तथा राजनीतिक कार्यों से कुछ लोगों का मतभेद भी है, किंतु आपका वास्तविक माहात्य हमारे नवयुवकों के प्राचार-शुद्धीकरण में है। श्रात्मबलि, देश-हित, पर-हित यादि की चाल आपके प्रयत्नों से बहुत बढ़ी है। हरिजनों की उन्नति पर भी नाप भगीरथ-प्रयत करते हैं । हिंदू-संगठन की वृद्धि, आपके द्वारा अच्छी है। नाम--( ४२६० ) धनराजपुरी, महंत, जिला चंपारन । जन्म-काल-सं० १९६०। रचना-काल-सं० १९७६ । ग्रंथ- स्फुट कविताएँ । विवरण ---यह महंतजी श्रीजंगवहादुर गिरि के पुत्र हैं । १६७८ में श्राप 'व्याकरण-वाचस्पति' की परीक्षा में सम्मान सहित उत्तीर्ण हुए तथा 'साहित्य-सरोज' की भी उपाधि पाई। इनकी रचनाएँसं० १९७६ से सामयिक समाचार-पत्रों में किंजल्क' और 'अलि' उप-नाम से प्रकाशित होती रहती हैं। कहा जाता है, अाजकल यह विधवा'- नामक काव्य-ग्रंथ और हितोपदेश' का अनुवाद करने में लगे हैं। संन्यास-धर्म लेकर अाजकल यह सिकटामठ के महंत हैं । कविता भाव- पूर्ण एवं नवीनत्व से अलंकृत है ।