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मिश्रबंधु

सं. १९७६ उत्तर नूतन माली अरे कुचाली ! तुने न प्रेम देखा, क्या अन्य की कली थी? थी जान वह मधुप की, उसका मधुप हृदय था, अलि - प्रेम में पली थी!! जो खो गया मधुप का, वह क्या उसे मिलेगा? माली थरे ! यता तू? जो है दशा भ्रमर की, वह किस तरह मिटेगी, यह तो हमें जता तु! नाम-(४२६१) रामलोचन शर्मा 'कंटक', ग्राम रामपुर, जिला दरभंगा। जन्म-काल-सं० १९६३ । रचना-काल-सं.१९७६ । ग्रंथ-(१) कसौटी (अनुवाद), (२) कर्म-शिक्षा (१९८१), (३) मोदक, (४) मोहनभोग, (२) चमचम, (६) ब्रह्मचर्य- शिक्षा, (७) प्रेम-पन्नावली, (4) सदाचार-शिक्षा, (8) नवीन पन्न-चंद्रिका, (१०) नवीन इतिहास-परिचय, (११) नवीन भूगोल- परिचय । विवरण ---यह पं० जयदेव शर्मा के सुपुत्र हैं। इनकी हिंदी शिक्षा पं० रामचरित्र झा के अध्यापकत्व में हुई और तभी से इनकी प्रवृत्ति साहित्य-सेवा की ओर हुई। यह सं० १९८१ में 'हिंदी-भूषण' की परीक्षा में सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए । आप सरल एवं मिलनसार स्वभाव के कारण अपने को 'अजातशत्रु' कहा करते हैं। इस समय यह काशी- हिंदू-विश्वविद्यालय में हिंदी तथा संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। श्राप खड़ी बोली के सत्कवि हैं । देश-प्रेस के कारण श्राप जेल