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मिश्रबंधु

सं० १९७६ , उत्तर नूतन निद्रालस अंकिम विशाल नेत्र मदे रही, किंवा मतवाली थी यौवन की मदिरा पिए, कौन कहे ? निर्दय उस नायक ने निपट निडराई की कि झोंकों की झाड़ियों से सुंदर सुकुमार देह सारी झकझोर डाली, मसल दिए गोरे कपोल गोल । चौक पड़ी युवती, चकित चितवन निज चारो ओर फेर , हेर प्यारे को लेज-पास नम्र-सुखी हँसी, खिली, खेल रंग, प्यारे-संग। संसार के भावों में सास्य स्थापन करने के लिये इन्होंने गद्य में अनेक प्रकार के अपने ही विश्वजनीन भाव साहित्य को प्राचुर्य से दिए हैं। ऐसे ही पद्य में भी प्राचीन अनेकानेक रूदियों को तोड़- कर छंदों की नवीन भूमि पर साहित्य के देदीप्यमान मंच को स्थापित किया है। साहित्य में आप जिस अहत दर्शन को अपनी भापा अथचा उत्कृष्ट भावों से रंजित करके जनता को प्रदान करते हैं, उसका विस्तार ही समाज को लक्ष्य प्राप्ति में सहायक - होगा । आप-जैसे नवयुवकों से हमारे वर्तमान साहित्य की शोभा है। समय-सं० १९७७ नाम-(४२६५) दीनानाथ 'अशंक', पहाड़गाँव, जालौन। जन्म-काल-सं० १९२८ । कविता-काल-सं० १९७७ ॥ अंथ-(1) दिव्य विचार, (२) देवल देवी, (३) चार-