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मिश्रबंधु

मिनबंधु-विनोद सं० १९७६

श्रांत पथिक की नयन-भ्रांति को पथ दिखला क्या भगा रही है? या जलधर के वज्र हृदय का परिचय जग को जना रही है ? गर्वोन्मत्तुन्मत्त जनों के क्या हृत्तल को डरा रही है? श्रीमानों की श्री की क्या तू चंचलता को बता रही है। या विरहिन की सुप्त व्यथा को - रह करके जगा रही है? संध्या हँसाने श्राती तू कुसुमित कली को कुमुद की ? .रुलाने या आती कमल-कलिका के हृदय को? चकी को प्रेमी से बिलग कर देने विरह या- नवेली प्राली को पति-भय दिलाने सु-उर में? दुबोने पाती तू दिवस-मणि को क्या उदधि में? बनाने बाँकी या पति-मन-रिझानी युवति को ? जगाने है श्राती मदन-मद पूर्णा तरुणि में? बहाने या आँसू विरह - विधुरा के नयन से। नाम-(४३०५) काशीनाथ द्विवेदी । जन्म-काल-सं० १९५४ । रचना-काल-सं०१९७६ । ग्रंथ-सतसई। विवरण-६० रुद्रदत्त शर्मा के पुत्र ।