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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन किसके छवि-जाल में लोचनों को उलझाकर प्रेम • दिवानी किस कुंज में तेरा विवाह हुआ, कब तू ऋतुराज की रानी हुई ॥३॥ जब व्योम से वारि की मुक्तावली अहा ! फूलझड़ी वन छूटती थी। जब अंक में बैठी हुई धन के चपला प्रणयासव धूटती थी। जब लंक लचाती लवंग- लता, कली मल्लिका की जब फूटती थी, तब बैठ कदंब के कुंज में तू , सजनी, सुख कौन-सा लूटती थी॥४॥ उस मीठे अतीत की विस्मृति है- तुझसे क्या कभी इठलाती नहीं, विचरी जिस क्रीडास्थली में कभी, उसी ओर क्यों दृष्टि धुमाती नहीं। वचनामृत से कर सिंचित लतिकाओं के प्राण बचाती नहीं उजड़ी हुई 'चंद्र' की वाटिका में हे कुहू किनी, क्यों अव थाती नहीं ॥५॥ नाम- -(४३१० ) श्यामारुण वंशी, मुंगेर। जन्म-काल-सं० १९५४। रचना-काल-सं०१६७१ ग्रंथ-(.)हिंदी व्याकरण-तत्त्व, (२) मनस्वी ध्रुव, (३) तिलक-प्रथा, (४) बिहार की सम्मिलित परिवार प्रणाली। क्यों B