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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण . विवरण-~-यह दादेगाँव-मठाधिपति और रामदासजी के प्रमुख शिष्यों में से थे । मुसलमानों पर हिंदू-धर्म का प्रभाव डालकर धार्मिक एकता के सिद्धांतों का प्रचार करना इनके जीवन का मुख्य ध्येय था। कविता द्वारा निज़ाम-राज्य में हिंदी और हिंदू-धर्म का इन्होंने प्रचार भी किया था। उदाहरण--- कही बात ये ही सही ब्राह्मणों की अच्छी भली-सी रहानी इन्हों की। तुम्हारा हमारा खुदा एक भाई; कहे देवदासौ ,नहीं है जुदाई । नाम-(५३) परिमल । ग्रंथ-श्रीपाल-चरित्र । रचना-काल-सं० १७४५ । विवरण-~-ग्रंथ छंदोबद्ध है। रचयिता जैन जान पड़ते हैं । नाम-(५२६) जसराज । रचना-काल-सं० १७४८ । ग्रंथ–जसराज-वाबनी (सवैया में )। (छंदों में)। विवरण-आप जैन साधु श्रीशांतिहर्ष के शिष्य थे। आप संभवतः गुजरात-देश के निवासी थे। नाम-(२६) अज्ञात । रचना-काल-सं०१७५० । ग्रंथ-गुजरात की राज-चरितावली । विवरण--- ग्रंथ गुजराती में पद्यात्मक है। बीच-बीच में चारणी- भापा का भी प्रयोग किया गया है। औरंगजेब के राज्य का उल्लेख ग्रंथ में होने से उसके रचना-काल का अनुमान किया गया है । 12 "