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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८० के निवासी थे, और वहीं से आपके पिता पं० नारायणप्रसाद मिश्र राजनादगांव (सी० पी०) में आकर बस गए । श्रापका जन्म इसी स्थान में हुा । इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करके सं० १९७७ में एम० ए० तथा सं० १६७८ में एल-एल० बी० की परीक्षाएं पास की । लेखन-शक्ति के अतिरिक्त श्रापसे वक्तृत्व-शक्ति भी है। इस समय यह रायगढ़-राज्य के असिस्टेंट ऐडमिनिस्ट्रेटर हैं। 3 उदाहरण- रुटि गयो पाभरन असन बसन सब, पीरे रंग केरो परिधान पहिरायगो ; नेह दीन रूखे केस करिगो जटान सम, अरुनारी आँखिन नसा नयो सो चोडायगो । धरनि की धूर कै गयो भभूति ताके हित, एक निज नाम ही की रटनि रटायगो सरस बसंत माहि जाय . परदेस पिय, बनिता बियोगिनी हूँ जोगिनी बनायगो। (शृंगार-शतक से) नाम-(५३२३) बालकृष्णदेव 'प्रम। जन्म-काल-सं० १९१५। रचना-काल-सं० १९८० ग्रंथ-(१) ज्योतिष-जाह्नवी, (२) विजय-पताका, (३) गोविंदाष्टक, (४) सचित्र ऋतु-रहस्य, (५) साहित्य-सौंदर्य, (६) दैवज्ञ दिनेश, (७) राजनीति-दर्पण, (८) सारिणी- सुवोध । विवरण---यह तैलंग ब्राह्मण एक सुकवि हैं। इनके पिता का नाम भट्ट गोविंददेव भट्टाचार्य है। यह टीकमगढ़ के राजगुरु हैं।