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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण ४६ सुनि हैं जो माननंद महावली राजसिंह, ताही छिन तुरत तुरंग चढ़ि धाबैंगे। नख जे डरारे ताको पहिरंगे बारे पंच, प्रान जे तिहारे यमपुर पहुँचायंगे; उधरै गो चरम कहावेंगे बाघंबर, ताहि कोई जोगिया दिगंबर बिछावेगे। नाम--(३६) मदनमोहन । ग्रंथ~स्फुट कविता । रचना-काल-१८वीं शताब्दी के मध्य-काल के लगभग । विवरण-~-इनकी रचना में अन्योक्तियों की मुख्यता है। उदाहरण- रे तमचुर चितचोर और किन बोलई, वृंदावन की कुंजनि केलि कलोलई । कुंजन-कुंजन फिरत सुशब्द सुनाइयो, प्रीतम बैननि लागे जंत्र जगाइयो । उरन सों उर, भुजन सों भुज संग, सोवति चैन सों, अधर-अमृत पियत लटके नैन लटके नैन सों। अलक अलकनि माँझ उरझी भाल लाल गुलाल सों, चंद सों ब्रजचंद उरझे अंग-अंग गुपाल सों। नाम-( ५३ ) मध्व मुनीश्वर, महाराष्ट्र प्रांत । ग्रंथ- स्फुट । कविता-काल-सं० १७५० । मृत्यु-काल-सं०.१७६१ । विवरण-कहा जाता है, यहः शिवाजी के सेनापति कन्होजी