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मिश्रबंधु

सं० १९८१ उत्तर नूतन 3 . 5 उदाहरण अली कली में फंसा प्रेम से मत्त बना है रस के वश में आज पढ़ा सुधि भूल रहा है। रवि अस्ताचल चला भला अब भी तो चेतो अरे प्रिया को चूम-घूम अपना पथ ले तो। पीछे अपने हाथ को, मल करके रह जायगा; कमल-कली मुंद जायगी, निशि-भर नीर बहायगा । नाम-(१३४३) मधुसूदन ओझा 'स्वतंत्र', महिला, इटादी (आरा)। जन्म-काल-सं० १९५६ । रचना-काल-सं० १९८१ ग्रंथ-(१) कंस-वध, (२) धर्मवीर, (३) मोरध्वज, (४) समाज-दर्पण ( अप्रकाशित )। विवरण प्राप पं० जगन्नाथ प्रोमा के पुन्न हैं । आपकी कवि- ताएँ (राष्ट्रीय ) प्रायः पत्र-पत्रिकाओं में निकला करती हैं। उदाहरण- धागे कैसे बद, सूझता नहीं भयानक पथ है श्राज; पीछे हटना नहीं जानता, रख लो भगवन मेरी ! लाज । पाशा तप विश्वास धैर्य हैं भक्ति-पंथ के प्रमुखाधार; बढ़ता हूँ नहि किंचित् डर है तुम पर मेरा रक्षा-भार । मन, बच, कर्म-भाव से सब दिन रहूँ धर्म-पालन में लीन; तप से कभी न विचलित हो,कभी न हो मम साहस हीन । मर जाऊँ यदि सत्य धर्म-हित, यही रहे दिल में अरमान ; अखिल विश्व-हित जन्म अनेकों धारण हों मेरे भगवान । हृदय भक्ति नहि, भाव शुद्ध हैं, सब प्रकार से हूँ अति दीन; इतना बल दे नाथ, हृदय में यही कामना लगी नवीन ।