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मिश्रबंधु

२५२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८२ १९८२ से पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखना प्रारंभ किया। इनके लेख सरल गद्य अथवा पद्य के अतिरिक्त समालोचनात्मक भी हुश्रा करते हैं। श्रापके और दो भाई हैं, और ये तीनो मिलकर सिंह-बंधु' के नाम से लेखन कार्य किया करते हैं। अपने पूज्य पिता की स्मृति में आपने मुजफ्फरपुर से 'लेखमाला'-नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका अपने ही संपादकत्व में निकाली है। श्राप खड़ी बोली में अच्छी रचना करते हैं। उदाहरण- छलछल छलक रहा है तेरे यौवन-मदिरा का प्याला, किस विषाद में किंतु कमल-मुख बना हुआ है यों काला । सरत हृदय में दुख देने को बाह ! गरल ने किया निवास, मंजु भाषिणी ! मृदुल हँसी के बदले यह कैसा निश्वास । विरह-विधुर यह अधर दुःख की झलक दिखाई देते हैं , नयन - कोण में छिपे अश्रु-कण हृदय चुरा ही लेते हैं। नाम-(४३५२).भैरवगिरि गोस्वामी, ग्रास कुमना, जिला सारन (बिहार-प्रांत)। जन्म-काल-सं० १६५७ (७ मार्च, सन् १९९०)। रचना-काल-सं. ग्रंथ-मारुति-विजय (खंड कान्य)। विवरण-आप संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान पं० दुर्वासा ऋषि विद्यावाचस्पति के पुत्र हैं । आपने १९७३ में 'कान्यतीर्थ' और १९७५ में सांख्यतीर्थ' परीक्षाएँ पास की। तथा कुछ काल-पर्यंत 'मित्रम्'- नामक संस्कृत-पाक्षिक पत्र के संपादकीय विभाग में काम किया। मापकी कुछ रचनाएँ 'माधुरी' और 'आयुर्वेद प्रदीप' में प्रकट हुई हैं। इस समय आप मुज़फ्फरपुर में एक स्कूल के संस्कृत-अध्यापक हैं। ०१६८२।