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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद श्राग्रे के गुरु थे। अमृतराय कवि इनके शिष्य थे । इनका असली नाम महादेव या त्र्यंबक बतलाया जाता है । उदाहरण- भज मन शंकर भोलानाथ । एकहि लोटा-भर जल चाहे, चावल बेल के पात ; बाएँ गौरि, जटा में गंगा, महिमा बरनि न जात । धरे बधंबर साई विशंभर, लिए निशूलहि हाथ ; अंग विभूति, मसान में खेलत, मध्व मुनीश्वर साथ . नाम-(५३) रामचंद्र । ग्रंथ-भाव-दीपक । रचना-काल-सं० १७५० । इस विषय में कवि ने स्वयं लिखा है- "एक सहस्त्ररु सप्तशत ऊपर और पचास," विवरण-ग्रंथ का विषय तत्त्व-ज्ञान है । नाम-(५६१) दिनकर, महाराष्ट्र-प्रांत । ग्रंथ-स्वानुभव-दिनकर एवं स्फुट । कविता-काल-सं० १७५३ । विवरण-इन्होंने अपने पिता नरहरि से शिक्षा पाई थी । कहा जाता है, १२ वर्ष तक तप करने के बाद यह रामदासजी के शिष्य उदाहरण- पद दूरि करो गुमराई, बाबा टेढ़ी बात से कछु नहिं काम, अच्छी है गरिबाई । बुरे फेल से कोउ न जीते, जम की बुरी खसलाई । कह दिनकर यक राम भजन बिन झूठी सब चतुराई । .