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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८२ पर खूब लड़ेंगे . । उदाहरण- वोरों का कड़खा होते हैं विकराल अाज थे जो योगी भूमि विपक्षी बिशिख वृद से मंडित होगी। उल्लू श्वान शृगाल लास काक चील श्री गीध खाल को खींच धरेंगे। जाते हैं रणभूमि में, शत्रु-सैन्य थहरायँगे ; 'एकलिंग जय' बोलकर, शोणित नदी बहायँगे। विपुल वीरता शौर्य धीरता मन घर . लेंगे। त्याग निठुरता शौर्य प्रोजमय उर कर देंगे बाण कराल धनुष-टंकार करेंगे . लखकर रुधिर-प्रवाह न पीछे पैर धरेंगे। जाकर हम रणक्षेत्र में, चंडी नृत्य । कराएँगे 'एक लिंग जय' बोलकर शोणित नदी बहाएँगे। नाम--(४३५६) वैद्यनाथ मिश्र 'विह्वल', हुसेनगंज, लखनऊ। जन्म-काल-सं० १९५२ रचना-काल-लगभग सं० १९८२ । अंथ-स्फुट कविताएँ। विवरण-आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण पं. गंगाप्रसादजी मिश्र के पुत्र तथा बस्तावरखेरा (जिला रायबरेली) के निवासी हैं। अब आपका स्थायी रूप से रहना लखनऊ में होता है। आप हिंदी तथा उर्दू दोनो में अच्छी कविता करते हैं। उदाहरण- छैलवा छबीले की छंटानं छवि छीनी छाप छहरि रही है छतियन में छबीली के . .