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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८३ . जन्म-काल--सं० १९१४ ।। कविता-काल-सं० १९८३ । विवरण-~भापके पिता का नाम पंडित शिवराम मित्र है। श्राप रेल के मोहकमा हिसाब में ७ साल से काम करते हैं। आपने प्रायः छ मास त्रिवेणी पत्रिका का संपादन रिया था। स्फुट गद्य-पद्यमय लेख बहुतेरे लिखते आए हैं । स्फुट छंद तथा छायावाद की रचना भी कर चुके हैं। अधिकतर अन्योक्ति लिखा करते हैं । रचना उत्कृष्ट बनती है। उदाहरण--- छिन हुई धारा भिन्न स्वार्थ से भरे चे. मित्र, खिन्न हुए खेचर मलीन तेरे परिधान श्रृंग वे न शोभा से अलंकृत ललाम धाम, शीतल. सलिल और झूल हैं न भासमान । तरल तरंगें बारहालिनी विलास • पूर्ण, मंझानिल झाग तेरा वैभव भरा गुमान; नष्ट हुआ बालुका की राशि मैं सभी तो आज, सरिते समीप है उदधि तेरा अवसान । रूप-राशि इंदिरा समर्पित की श्रीपति को, चारुणी पिलाई असुरों को सिंधु मतिमान गरल फणीश को गिरीश को दिया. सुधांशु, ऐरावत से सुरेंद्र का भी किया सनमान । तृप्त किए देवबंद अमृत से हो प्रसन्न, कल्पवृक्ष पाकर कुबेर बना देकर अगस्त्य को शरीर दान रतनिधि, तुमने उदारता की खूब ही निबाही शान । 3 धनवान।