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मिश्रबंधु

मिश्नबंधु-विनोद सं० १९८३ जन्म-काल-लगभग सं० १९५८। रचना-काल-सं० १९८३ । अंथ-(१) विद्यापति की पदावली, (२) बिहारी-सत्तसई की टीका, (३) बगुला भगत, ( ४ ) लियार पाँ, (५) बिलाई मौसी, (६) तोता-मैना, (७) शिवाजी, (८) गुरु गोविंदसिंह, (8) विद्यापति, (१०) बाबू लंगटसिंह आदि । विवरण --आप बाबू कुलवंतसिंह के पुत्र भूमिहार ब्राह्मण हैं । बाप एक बड़े विनोदी नवयुवक, लेखक एवं कवि है । 'बीसवीं सदी के श्रीकृष्ण' नाम की श्रापकी पहली कविता, जो आगे उद्धृत की गई है, सामयिक पन्नों में प्रशंसा के साथ प्रकाशित हुई । हिंदी, उर्दू के अतिरिक्त आप बँगला तथा गुजराती भाषाएँ भी जानते हैं । 'तरुण भारत', 'किलान-मित्र' तथा 'गोलमाल' पत्रों के संपादन का कार्य छापने कुछ काल तक किया। बालकोपयोगी पन्न 'बालक' के श्राप जन्मदाता हैं। इस समय श्राप 'युवक' नामक मालिक पत्र को पटने से निकाल रहे हैं। उदाहरण- बसंत-संध्या सांध्य पवन सननन सननन कर सुखंद बह रही, चिड़िया चहक-चहककर चित्त का चैन कह रही। चटक-चटककर कली हृदय को . चटकाती है भ्रमरावलि भन-भनकर मन को भटकाती है ऋतु वसंत संध्या समय, सुंदर उपवन कुंज है अपना प्यारा पास में यहीं . स्वर्ग-सुख-पुज बीसवीं सदी के श्रीकृष्ण साँवरे पुनः तुम्हें यदि पाऊँ, पूरा जटिलमैन बनाकर सारी कसक मिटाऊँ। १ ।