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मिश्रबंधु

सं० १९८३ उत्तर नूतन कटि कानी केसरिया जामा हीरा हार हटाऊँ, चूट सूट नेकदाई ऊपर चश्मा चेन चढ़ाऊँ। २ । प्यारी वंशी छीन अधर पर चुल्ट सिगार जलाऊँ, कलगी मुजुट गोपिका सोहन फेक हैट पहना। ३ ! लकुट तोड़ दे केन लचीला सुक चाल चलवाऊँ, गीता के घर बैन भुलाकर गिटपिट वोल बुलाऊँ। ४ । दधि माखन मिश्री भाजन यमुना में भसिनाऊँ, लेमनेड सोडा हिरकी प्याऊँ विलकुट केक खिलाऊँ। ५ । अदला गोपी जानि सताया पर अव कहत डराऊँ, सबला लेडी साथ करूँ मैं सारे छा छुड़ाऊँ। ६ । रंज न हो जैसा दे रक्खा वैसा साज सजाऊँ, दाँग पसार स्नग में सोते उसका मजा चखाऊँ। ७ । नाम---(४३६३) रुद्रदत्त मिश्र, खौरावाद, कोटा राज्य । जन्स-काल-सं० १९६३ । ग्रंथ-(१) हरिश्चंद्र ( पय-पुस्तक, अप्रकाशित), (२) क्षमना- चरित्र (नाटक, अप्रकाशित), (३)बीर रमणी (पद्य-पुस्तक), (४) उपदेश-सप्तमाती (अपूर्ण, कुछ अंश प्रकाशित), (५) स्पुट कविताएँ। विवरण---श्राप शांडिल्य गोत्रीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंडित गोकुल- प्रसादजी मिश्र के पुत्र हैं। श्रापके पिताजी कोटा-राज्यांतर्गत बैरा- बाद में पेंशनर कानूनगो हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहाती पाठ- शालाओं में हुई । हिंदी भाषा तथा साहित्य से आपको पहले ही से रचि थी, अतएव अापने इसका अध्ययन जारी रखकर साहित्य- सम्मेलन की परीक्षाएँ सफलता पूर्वक पास की। श्रागरे से नार्मल- परीक्षा भीमाए पास कर चुके हैं। इस समय ये मॉडल स्कूल, कोटा