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मिश्रबंधु

9 मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८३ में सहायक अध्यापक हैं । आप ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली दोनो ही में कविता करते हैं । डमरूबद्ध, कृपाणबद्ध, कपाटबद्ध आदि चित्र । काव्य करने में भी यह सहाशय अभ्यस्त हैं। इनकी कविताएँ यदा- कदा, तरुणराजस्थान, कर्तव्य, ‘कान्यकुब्ज हितकारी, विश्वमित्र, कवि कौमुदी श्रादि पत्र-पत्रिकाओं में निकलती रहती हैं। इस समय यह खड़ी बोली में एक सप्तशती तैयार कर रहे हैं। आपकी रचनाएँ 'सुरेश' नाम से अंकित रहा करती हैं। रचना उच्च कोटि की है। उदाहरण- किधौं अंधकार पे प्रचंड मारतंड कोप्यौ, किधौं घोर कानन में अग्नि-ज्वाल धाई है विधौं मूल पादप समूह के उखारिवे को संसानिल प्रबल झकोर भूमि आई है। कैधौं धन माहिं सृष्टि छारिने को 'सुरईश', लोचन त्रिलोचन की चंड ज्योति शई है कैधौ करिबे को ध्वंस म्लेच्छन के बंस आज, वीर सिरताज श्रीप्रताप की चढ़ाई है। नाम-(४३६४) श्यामधारीप्रसाद श्याम', ग्राम भगवानपुर, जिला मुजफरपुर। जन्म-काल-सं १९५८ । रचना-काल-सं० १९८३ । ग्रंथ--स्फुट कविताएँ। विवरण-आप श्रीवास्तव कायस्थ बाबू वासुदेवनारायण के पुत्र हैं। आप सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में विक्षिप्त', 'श्यामवन', 'श्याम' तथा 'श्रीश्याम' नाम से पद्य और 'मंद मलयानिल' नाम से गब लिखा करते हैं । सुकधि तथा अच्छे गद्य-लेखक हैं ।